संविधान दिवस क्यों मनाया जाता है? पृष्ठभूमि और विशेषताएं और आगे की राह
संविधान दिवस क्यों मनाया जाता है? पृष्ठभूमि और विशेषताएं और आगे की राह
आपका स्वागत है
आज का हमारा
आर्टिकल संविधान दिवस
के अवसर पर एक विशेष
प्रस्तुति है इस
आर्टिकल
में हम भारतीय
संविधान की विकास
यात्रा के बारे में बात
करेंगे हम इसके माध्यम से
संविधान की उपलब्धियों
के बारे में
भी जानेंगे साथ
ही इसके लक्ष्यों
के समक्ष चुनौतियों
को भी समझे यह आर्टिकल
राज्यव्यवस्था से जुड़ा हुआ है तो कृपया ध्यान से
पढ़े।
परिचय:
संविधान एक ऐसा दस्तावेज जो देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को जीवंत रखता है एक ऐसा ग्रंथ जो नीति निर्माताओं को राह दिखाता है नियमों का एक ऐसा संग्रह है जो सरकार को नागरिक अधिकारों का और हमें नागरिक कर्तव्यों का बोध कराता है आज उसी संविधान का दिन है 1949 में आज ही के दिन आजाद भारत को एक मुकम्मल संविधान मिला था 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने भारत के संविधान को अपनाया जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ संविधान तैयार होने के करीब 65 दशक बाद 19 नवंबर 2015 को केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 26 नवंबर को प्रतिवर्ष संविधान दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की इससे पहले इस दिन को कानून दिवस के रूप में मनाया जाता था इसे संविधान दिवस के रूप में मनाने के पीछे सरकार का मकसद नागरिकों के बीच संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देना है।
संविधान निर्माण की यात्रा: पृष्ठभूमि
संविधान निर्माण की
यात्रा को समझते
हैं भारतीय संविधान
दुनिया का सबसे बड़ा दस्तावेज
है जिसमें लगभग
1.46 लाख शब्द हैं
इतने बड़े दस्तावेज
को लिखने के
लिए भारत में
एक संविधान सभा
के निर्माण का
प्रस्ताव रखा गया
इस प्रस्ताव को
सर्वप्रथम वर्ष 1934 में एमएन
रॉय द्वारा रखा
गया था इसके बाद वर्ष
1938 में जवाहरलाल नेहरू ने
कांग्रेस की ओर
से ऐलान किया
कि आजाद भारत
का संविधान बिना
किसी बाहरी दखल
वयस्क मताधिकार के
आधार पर और निर्वाचित संविधान सभा
द्वारा बनाया जाना
चाहिए इस मांग को ब्रिटिश
सरकार ने सैद्धांतिक
रूप से स्वीकार
कर लिया जिसे
1940 के अगस्त प्रस्ताव
के रूप में जाना जाता
है वर्ष 1942 में
कैबिनेट के एक सदस्य सर
स्टेफोर्ड क्रिप्स ब्रिटिश सरकार
के एक मसौदा
प्रस्ताव के साथ
भारत आए इस मसौदा प्रस्ताव
के तहत द्वितीय
विश्व युद्ध के
बाद अपनाए जाने
वाले एक स्वतंत्र
संविधान का निर्माण
करना था क्रिप्स
को वास्तव में
मुस्लिम लीग ने अस्वीकार कर दिया था लीग
चाहती थी कि भारत को
दो अलग-अलग संविधान सभाओं के
साथ दो स्वायत
राज्यों में विभा
ित किया जाए
आखिरकार एक कैबिनेट
मिशन भारत भेजा
गया हालांकि इसने
दो संविधान सभाओं
के विचार को
खारिज कर दिया लेकिन इसने
संविधान सभा के लिए एक
योजना पेश की जिसने कमोवेश
मुस्लिम लीग को संतुष्ट किया वर्ष
1946 की कैबिनेट मिशन
योजना के तहत भारतीय संविधान
बनाने के लिए संविधान सभा का गठन किया
गया था इसका गठन 6 दिसंबर
1946 को हुआ था संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 300 89 निश्चित की
गई थी इसमें
292 प्रतिनिधि ब्रिटिश प्रांतों के
चार चीफ कमिश्नर
और 93 प्रतिनिधि देशीय
रियासतों के थे
कुल 389 सदस्यों में
से प्रांतों के
लिए निर्धारित 296 सदस्यों
के लिए चुनाव
हुए इसमें कांग्रेस
और मुस्लिम लीग
को क्रमशः 208 और
73 वोट तथा 15 वोट
अन्य दलों को और स्वतंत्र
उम्मीदवार को मिले
थे संविधान सभा
की प्रथम बैठक
का आयोजन 9 दिसंबर
1946 को दिल्ली स्थित
काउंसिल चेंबर के
पुस्तकालय भवन में
हुआ था इसकी अध्यक्षता सभा के सबसे बुजुर्ग
सदस्य सच्चिदानंद सिन्हा
ने की थी वे सभा
के स्थाई अध्यक्ष
चुने गए थे डॉ राजेंद्र
प्रसाद इसके स्थाई
अध्यक्ष चुने गए थे संविधान
सभा में प्रांतों
या देसी रियासतों
को उनकी आबादी
के अनुपात में
सीटों का प्रतिनिधित्व
दिया गया था
10 लाख की जनसंख्या
पर एक सीट का आवंटन
किया गया हैदराबाद
एक ऐसी रियासत
थी जिसके प्रतिनिधि
संविधान सभा में समृत नहीं
हुए थे संविधान
सभा में 213 सामान्य
33 अनुसूचित जाति 12 महिला 69 मुस्लिम
और चार सिख सदस्य थे
प्रत्येक प्रांत में
सीटें तीन मुख्य
समितियों मुस्लिम सिख और जनरल के
बीच उनकी संबंधित
जनसंख्या के अनुपात
में वितरित की
गई प्रांतीय विधानसभा
में प्रत्येक समुदाय
के सदस्यों ने
एकल संक्रमणीय वोट
के साथ आनुपातिक
प्रतिनिधित्व की विधि
द्वारा खुद के प्रतिनिधियों का चुनाव
किया भारतीय राज्यों
के प्रतिनिधियों के
माम मामले में
चयन की विधि सांना द्वारा
निर्धारित की जानी
थी संविधान सभा
की कार्यवाही 13 दिसंबर
1946 को जवाहरलाल नेहरू
द्वारा प्रस्तुत उद्देश
प्रस्ताव के साथ
शुरू हुई थी संविधान सभा में
13 समितियां थी यह
समितियां संविधान सभा के विभिन्न कार्यों से
निपटने के लिए गठित की
गई थी संविधान
सभा के अंतर्गत
संविधान निर्माण की
समिति बनी जिसे
ड्राफ्ट कमेटी भी
कहा जाता है इस समिति
को तब तक तैयार संविधान
के प्रारूप पर
बहस करके संविधान
सभा में प्रस्तुत
करना था जो उसे अंतिम
रूप देगी 3 जून
1947 की योजना के
तहत विभाजन के
परिणाम स्वरूप पाकिस्तान
के लिए एक अलग संविधान
सभा की स्थापना
की गई बंगाल
पंजाब सिंध उत्तर
पश्चिमी सीमांत प्रांत
बलूचिस्तान और असम
के सिलहट जिले
के प्रतिनिधि भारत
की संविधान सभा
के सदस्य नहीं
रहे पश्चिम बंगाल
और पूर्वी पंजाब
के नए प्रांत
में एक नया चुनाव हुआ
ऐसे में सदन की सदस्य
संख्या घटकर 299 रह
गई भारत डोमिनियन
के लिए संप्रभु
संविधान सभा के रूप में
14 अगस्त 1947 को फिर
से सभा इकट्ठी
हुई संविधान के
निर्माण में दो वर्ष 11 माह और
18 दिन का समय लगा था
संविधान सभा ने जब 26 नवंबर
1949 को संविधान को
अंगीकृत किया तो इसके सभी
सदस्यों ने उस पर दस्तखत
किए सिर्फ उन्नाव
निवासी क्रांतिकारी शायर
और संविधान सभा
के सदस्य हसरत
मोहानी ने दस्तखत
करने सेन कर दिया वह
भारत को राष्ट्र
मंडल का अंग बनाए जाने
के विरोधी थे।
भारतीय संविधान
की विशेषताएं:
इतना कुछ समझने
के बाद चलिए
भारतीय संविधान की
विशेषताओं के बारे
में जान लेते
हैं असल में दुनिया के
सबसे विस्तृत संविधान
ने अपने अंदर
ढेर सारी विशेषताओं
को समेटा हुआ
है कुछ विशेषताएं
सामान्य सी दिखती
हैं लेकिन कुछ
बहुत अनूठी हैं
पंडित नेहरू यूरोपीय
पुनर्जागरण अमेरिका की स्वतंत्रता
और फ्रांसीसी क्रांति
के विचारों से
बेहद प्रभाव थे
भारतीय संविधान के
कई प्रावधान इन
देशों से ही प्रेरित हैं यही वजह है
कि भारतीय संविधान
में भी इन देशों की
झलक दिखाई पड़ती
है डॉक्टर भीमराव
अंबेडकर भी इसके पक्षधर थे
वह भी चाहते
थे कि दुनिया
के अलग-अलग संविधान का अध्ययन
करके ही भारत के संविधान
का निर्माण हो
संविधान ने शासन व्यवस्था के रूप में संसदीय
व्यवस्था को अपनाया
जो ब्रिटेन की
संसदीय व्यवस्था से
प्रभावित हैं आजादी
के बाद नियमित
अंतराल पर आम चुनाव उन्न
हुए और हमारी
लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था
और सुदृढ़ होती
चली गई वयस्क
मताधिकार के प्रावधान
ने भारतीय लोकतंत्र
को मजबूत किया
इससे भारतीय राजनीति
की दशा और दिशा दोनों
बदली है नागरिकों
की सहभागिता ने
भारतीय लोकतंत्र को
ज्यादा जीवंत बनाया
है संविधान भारत
के सभी लोगों
को सामाजिक आर्थिक
और राजनीतिक न्याय
की गारंटी और
सुरक्षा का वादा करता है
अवसर की स्थिति
और कानून के
समक्ष समानता कानून
और सार्वजनिक नैतिकता
के अधीन विचार
अभिव्यक्ति विश्वास पूजा व्यवसाय
संघ और कारवाही
की स्वतंत्रता की
बात करता है इसमें अल्पसंख्यकों
पिछड़े और आदिवासी
क्षेत्रों और दलित
और अन्य पिछड़े
वर्गों के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय
प्रदान किए गए हैं मौलिक
अधिकारों ने आम
भारतीयों में निहित
संभावनाओं को तलाशने
में मदद की मौलिक अधिकारों
के कारण सामान्य
व्यक्ति की नागरिक
स्वतंत्रता में वृद्धि
हुई नीति निर्देशक
सिद्धांतों में सामाजिक
आर्थिक समता की संकल्पना की गई है इसने
सरकारों का मार्गदर्शन
किया और इसका नतीजा आज
हमारे सामने है
कि भारत का लोक कल्याणकारी
राज्य के रूप में तेजी
से उभार हुआ
अगर हम संविधान
की विशेषताओं का
अवलोकन करें तो यह साफ
पता चलता कि भारतीय संविधान
के दर्शन प्रस्तावना
में उल्लिखित हम
भारत के लोग के भावना
सहित सभी मूल्यों
को भारतीय संविधान
का प्रत्येक शब्द
ना सिर्फ अभिव्यक्त
करता है बल्कि
लगातार उनके प्रसार
का माध्यम भी
बना हुआ है।
क्या संविधान के लक्ष्यों को हासिल किया जा सका है ?
अब सवाल है
कि क्या संविधान
के लक्ष्यों को
हासिल किया जा सका है
जहां तक भारतीय
संविधान के लक्ष्यों
का सवाल है तो इसका
लक्ष्य एक ऐसे देश का
निर्माण करना है जो समता
मूलक हो मानव अधिकारों से सुसज्जित
हो जहां के लोग शिक्षा
से लस हो और वहां
लोकतांत्रिक भावनाओं की रक्षा
हो सवाल है कि क्या
हम इन लक्ष्यों
को हासिल कर
चुके हैं अगर भारत में
शिक्षा की बात करें तो
यहां वृक्षों की
तादाद 28.2 करोड़ है
जबकि भारत की कुल आबादी
करीब 140 करोड़ है
स्कूल जाने वाले
कुल बच्चों में
18 फीसद माध्यमिक शिक्षा
भी पूरी नहीं
कर पाते जबकि
संविधान के अनुच्छेद
211a के तहत यह एक मौलिक
अधिकार है मौजूदा
वक्त में भारत
में दुनिया के
सबसे यानी 4 करोड़
अविकसित बच्चे हैं
जिनका कद अपनी उम्र के
औसत से कम है यह
कुल बच्चों का
अर्थ 3.7 फीस है
सबसे खराब और सबसे अच्छी
आर्थिक स्थिति वाले
राज्यों में पोषण
का बड़ा अंतर
है मिसाल के
तौर पर झारखंड
में 5 साल से कम आयु
के 47 प्र बच्चे
अविकसित हैं जबकि
केरल में मात्र
19 फीसद झारखंड में
42.1 फस बच्चों का
वजन कम है जबकि संविधान
के अनुच्छेद 47 के
तहत पोषण और स्वास्थ्य सरकार की
ही जिम्मेदारी है
अनुच्छेद 38 के तहत
राज्य लोगों के
साथ सामाजिक राजनीतिक
और आर्थिक न्याय
करेगा लेकिन तीनों
ही स्तर पर देश में
तमाम कमियां हैं
समाज में भेदभाव
अभी भी एक सच्चाई है
लोगों को अभी भी राजनीतिक
न्याय का इंतजार
है और आर्थिक
न्याय तो दूर की कौड़ी
ही जान पड़ती
है ऑक्सफेम की
एक रिपोर्ट के
मुताबिक भारत में
सबसे अमीर 1 प्र
लोगों के पास कुल संपत्ति
का 40 प्र से अधिक हिस्सा
है जो कि एक अपराध
है रिपोर्ट का
दावा है कि महिला श्रमिक
पुरुष श्रमिक द्वारा
कमाए गए प्रति
₹ की कमाई पर केवल 63 पैसे कमाती
है अनुसूचित जाति
और ग्रामीण श्रमिकों
के लिए अंतर
और भी गहरा है अनुसूचित
जाति का श्रमिक
लाभ प्राप्त सामाजिक
समूहों की कमाई का महज
55 प्र कमाता है
और ग्रामीण श्रमिक
ने 2018 और 2019 के
बीच शहरी कमाई
का केवल आधा
हिस्सा कमाया रिपोर्ट
का यह दावा है कि
शीर्ष 100 अरबपति भारतीयों
के पास इतना
पैसा है कि उन पर
दो 2.5 प्र टैक्स
लगाने से बच्चों
को स्कूल में
वापस लाने के लिए आवश्यक
राज पूरी हो जाएगी यह
तो कुछ उदाहरण
भर हैं ऐसे तमाम मिसाले
हैं जिनमें समझा
जा सकता है कि भारतीय
संविधान अभी भी की
अपने लक्ष्यों से
बेहद दूर है।
भारतीय संबिधान की आगे राह क्या हो?
ऐसे में
सवाल है कि आगे राह
क्या हो गौर तलब है
कि भारतीय गणतंत्र
ने अपनी यात्रा
के करीब सात
दशक पूरे कर लिए हैं
इसने अपने लक्ष्यों
को संपूर्ण रूप
से अभी तक हासिल भले
ही ना किया हो लेकिन
इस इसमें भी
कोई दो राय नहीं है
कि यह लगातार
निखर रहा है भारत जैसे
विशाल और विविधता
से भरे देश में एक
संविधान के तहत व्यवस्था का सुचारू
रूप से चलना कोई मामूली
बात नहीं है लेकिन इसके
बावजूद भारत ने कई मामलों
में प्रगति की
है दुनिया के
दूसरे देशों में
संविधान ना सिर्फ
अपने लक्ष्यों में
कोसों दूर है बल्कि वहां
के संविधान कदम
दर कदम नाकाम
हो रहे हैं पड़ोसी देश
नेपाल की संविधान
सभा कई बार असफल हुई
थी और वहां संविधान की रक्षा
एक बड़ी चुनौती
बनी हुई है भारत के
साथ आजाद हुए
दूसरे कई मुल्कों
का भी वही हाल है
वहां कोई एक सिस्टम टिक
नहीं पा रहा कहीं संविधान
बदले जा रहे हैं तो
कहीं उनकी धज्जियां
उड़ाई जा रही हैं वहां
जनतंत्र के पैर जम नहीं
पा रहे लेकिन
हमारी व्यवस्था निरंतर
लोकतांत्रिक की ओर
बढ़ रही है हमारा लोकतंत्र
लगातार मजबूत हो
रहा है जिसकी
उम्मीद सात दशक पहले की
किसी ने नहीं की थी
यह ना केवल सफल हुआ
है बल्कि भारत
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र
है आज भारत अखंड है
और कुछ अपवाद
को दरकिनार कर
दें तो यहां निरंकुश व्यवस्था कायम
नहीं हुई कभी कोई गृह
युद्ध नहीं हुआ
यह सब हमारे
दूर दृष्टि संपन्न
और समावेशी संविधान
की ही देन है समझना
होगा कि किसी भी संविधान
में हर परिस्थिति
का समाधान नहीं
दिया जा सकता बदलती हुई
परिस्थितियों के साथ
संविधान ने हमें हमशा ही
हमारे समाज का मार्गदर्शन किया है यह भी
समझने की जरूरत
है कि संविधान
अपने बल पर कभी कामयाब
नहीं होते उन्हें
कामयाब करने के लिए नागरिकों
तथा जनप्रतिनिधियों को
सजगता से काम करना होता
है हम कह सकते हैं
कि लागू होने
के सात दशक बाद आज
संविधान का सपना भले ही
पूरी तरह सच ना हुआ
हो लेकिन उसके
दिशा निर्देश पर
चलकर भारत एक महान राष्ट्र
बनने में सफल जरूर हुआ
है हमें यह याद रखने
की जरूरत है
कि भारतीय संविधान
सिर्फ एक कागज का दस्तावेज
नहीं है यह एक नागरिक
दस्तावेज है जिसकी
हिफाजत करना हम सभी भारतीयों
का कर्तव्य है
तो हमारा आज
का सवाल है भारतीय संविधान
अपने लक्ष्यों की
ओर लगातार अग्रसर
है इसकी विवेचना
।
FIQ
26 नवंबर संविधान दिवस
क्या है?
26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया
जाता है और कानून दिवस भी आज ही के दिन मनाया जाता है।
26 नवंबर 1949 को संविधान बनकर
तैयार हुआ था।
26 नवंबर का क्या महत्व
है?
आज के दिन संविधान दिवस के लिए बहुत ही खास होता है।
भारत का कौन सा संविधान दिवस 2023?
भारत में 26 नवंबर, दिन रविवार को संविधान दिवस मनाया जायेगा।
आज के दिन लोग #constitutionday2023 , constitution Day 2023 के नाम से ट्रेंड चलायेगे।