संविधान दिवस क्यों मनाया जाता है? पृष्ठभूमि और विशेषताएं और आगे की राह

 

संविधान दिवस क्यों मनाया जाता है? पृष्ठभूमि और विशेषताएं और आगे की राह

आपका स्वागत है आज का हमारा आर्टिकल संविधान दिवस के अवसर पर एक विशेष प्रस्तुति है इस  आर्टिकल में हम भारतीय संविधान की विकास यात्रा के बारे में बात करेंगे हम इसके माध्यम से संविधान की उपलब्धियों के बारे में भी जानेंगे साथ ही इसके लक्ष्यों के समक्ष चुनौतियों को भी समझे यह आर्टिकल राज्यव्यवस्था से जुड़ा हुआ है तो कृपया ध्यान से पढ़े।


Constitution Day 2023

परिचय:

संविधान एक ऐसा दस्तावेज जो देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को जीवंत रखता है एक ऐसा ग्रंथ जो नीति निर्माताओं को राह दिखाता है नियमों का एक ऐसा संग्रह है जो सरकार को नागरिक अधिकारों का और हमें नागरिक कर्तव्यों का बोध कराता है आज उसी संविधान का दिन है 1949 में आज ही के दिन आजाद भारत को एक मुकम्मल संविधान मिला था 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने भारत के संविधान को अपनाया जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ संविधान तैयार होने के करीब 65 दशक बाद 19 नवंबर 2015 को केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 26 नवंबर को प्रतिवर्ष संविधान दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की इससे पहले इस दिन को कानून दिवस के रूप में मनाया जाता था इसे संविधान दिवस के रूप में मनाने के पीछे सरकार का मकसद नागरिकों के बीच संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देना है

संविधान निर्माण की यात्रा: पृष्ठभूमि


#ConstitutionDay 


 संविधान निर्माण की यात्रा को समझते हैं भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा दस्तावेज है जिसमें लगभग 1.46 लाख शब्द हैं इतने बड़े दस्तावेज को लिखने के लिए भारत में एक संविधान सभा के निर्माण का प्रस्ताव रखा गया इस प्रस्ताव को सर्वप्रथम वर्ष 1934 में एमएन रॉय द्वारा रखा गया था इसके बाद वर्ष 1938 में जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस की ओर से ऐलान किया कि आजाद भारत का संविधान बिना किसी बाहरी दखल वयस्क मताधिकार के आधार पर और निर्वाचित संविधान सभा द्वारा बनाया जाना चाहिए इस मांग को ब्रिटिश सरकार ने सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया जिसे 1940 के अगस्त प्रस्ताव के रूप में जाना जाता है वर्ष 1942 में कैबिनेट के एक सदस्य सर स्टेफोर्ड क्रिप्स ब्रिटिश सरकार के एक मसौदा प्रस्ताव के साथ भारत आए इस मसौदा प्रस्ताव के तहत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपनाए जाने वाले एक स्वतंत्र संविधान का निर्माण करना था क्रिप्स को वास्तव में मुस्लिम लीग ने अस्वीकार कर दिया था लीग चाहती थी कि भारत को दो अलग-अलग संविधान सभाओं के साथ दो स्वायत राज्यों में विभा ित किया जाए आखिरकार एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया हालांकि इसने दो संविधान सभाओं के विचार को खारिज कर दिया लेकिन इसने संविधान सभा के लिए एक योजना पेश की जिसने कमोवेश मुस्लिम लीग को संतुष्ट किया वर्ष 1946 की कैबिनेट मिशन योजना के तहत भारतीय संविधान बनाने के लिए संविधान सभा का गठन किया गया था इसका गठन 6 दिसंबर 1946 को हुआ था संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 300 89 निश्चित की गई थी इसमें 292 प्रतिनिधि ब्रिटिश प्रांतों के चार चीफ कमिश्नर और 93 प्रतिनिधि देशीय रियासतों के थे कुल 389 सदस्यों में से प्रांतों के लिए निर्धारित 296 सदस्यों के लिए चुनाव हुए इसमें कांग्रेस और मुस्लिम लीग को क्रमशः 208 और 73 वोट तथा 15 वोट अन्य दलों को और स्वतंत्र उम्मीदवार को मिले थे संविधान सभा की प्रथम बैठक का आयोजन 9 दिसंबर 1946 को दिल्ली स्थित काउंसिल चेंबर के पुस्तकालय भवन में हुआ था इसकी अध्यक्षता सभा के सबसे बुजुर्ग सदस्य सच्चिदानंद सिन्हा ने की थी वे सभा के स्थाई अध्यक्ष चुने गए थे डॉ राजेंद्र प्रसाद इसके स्थाई अध्यक्ष चुने गए थे संविधान सभा में प्रांतों या देसी रियासतों को उनकी आबादी के अनुपात में सीटों का प्रतिनिधित्व दिया गया था 10 लाख की जनसंख्या पर एक सीट का आवंटन किया गया हैदराबाद एक ऐसी रियासत थी जिसके प्रतिनिधि संविधान सभा में समृत नहीं हुए थे संविधान सभा में 213 सामान्य 33 अनुसूचित जाति 12 महिला 69 मुस्लिम और चार सिख सदस्य थे प्रत्येक प्रांत में सीटें तीन मुख्य समितियों मुस्लिम सिख और जनरल के बीच उनकी संबंधित जनसंख्या के अनुपात में वितरित की गई प्रांतीय विधानसभा में प्रत्येक समुदाय के सदस्यों ने एकल संक्रमणीय वोट के साथ आनुपातिक प्रतिनिधित्व की विधि द्वारा खुद के प्रतिनिधियों का चुनाव किया भारतीय राज्यों के प्रतिनिधियों के माम मामले में चयन की विधि सांना द्वारा निर्धारित की जानी थी संविधान सभा की कार्यवाही 13 दिसंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश प्रस्ताव के साथ शुरू हुई थी संविधान सभा में 13 समितियां थी यह समितियां संविधान सभा के विभिन्न कार्यों से निपटने के लिए गठित की गई थी संविधान सभा के अंतर्गत संविधान निर्माण की समिति बनी जिसे ड्राफ्ट कमेटी भी कहा जाता है इस समिति को तब तक तैयार संविधान के प्रारूप पर बहस करके संविधान सभा में प्रस्तुत करना था जो उसे अंतिम रूप देगी 3 जून 1947 की योजना के तहत विभाजन के परिणाम स्वरूप पाकिस्तान के लिए एक अलग संविधान सभा की स्थापना की गई बंगाल पंजाब सिंध उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत बलूचिस्तान और असम के सिलहट जिले के प्रतिनिधि भारत की संविधान सभा के सदस्य नहीं रहे पश्चिम बंगाल और पूर्वी पंजाब के नए प्रांत में एक नया चुनाव हुआ ऐसे में सदन की सदस्य संख्या घटकर 299 रह गई भारत डोमिनियन के लिए संप्रभु संविधान सभा के रूप में 14 अगस्त 1947 को फिर से सभा इकट्ठी हुई संविधान के निर्माण में दो वर्ष 11 माह और 18 दिन का समय लगा था संविधान सभा ने जब 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकृत किया तो इसके सभी सदस्यों ने उस पर दस्तखत किए सिर्फ उन्नाव निवासी क्रांतिकारी शायर और संविधान सभा के सदस्य हसरत मोहानी ने दस्तखत करने सेन कर दिया वह भारत को राष्ट्र मंडल का अंग बनाए जाने के विरोधी थे

भारतीय संविधान की विशेषताएं:




Constitution Day 


इतना कुछ समझने के बाद चलिए भारतीय संविधान की विशेषताओं के बारे में जान लेते हैं असल में दुनिया के सबसे विस्तृत संविधान ने अपने अंदर ढेर सारी विशेषताओं को समेटा हुआ है कुछ विशेषताएं सामान्य सी दिखती हैं लेकिन कुछ बहुत अनूठी हैं पंडित नेहरू यूरोपीय पुनर्जागरण अमेरिका की स्वतंत्रता और फ्रांसीसी क्रांति के विचारों से बेहद प्रभाव थे भारतीय संविधान के कई प्रावधान इन देशों से ही प्रेरित हैं यही वजह है कि भारतीय संविधान में भी इन देशों की झलक दिखाई पड़ती है डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी इसके पक्षधर थे वह भी चाहते थे कि दुनिया के अलग-अलग संविधान का अध्ययन करके ही भारत के संविधान का निर्माण हो संविधान ने शासन व्यवस्था के रूप में संसदीय व्यवस्था को अपनाया जो ब्रिटेन की संसदीय व्यवस्था से प्रभावित हैं आजादी के बाद नियमित अंतराल पर आम चुनाव उन्न हुए और हमारी लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था और सुदृढ़ होती चली गई वयस्क मताधिकार के प्रावधान ने भारतीय लोकतंत्र को मजबूत किया इससे भारतीय राजनीति की दशा और दिशा दोनों बदली है नागरिकों की सहभागिता ने भारतीय लोकतंत्र को ज्यादा जीवंत बनाया है संविधान भारत के सभी लोगों को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय की गारंटी और सुरक्षा का वादा करता है अवसर की स्थिति और कानून के समक्ष समानता कानून और सार्वजनिक नैतिकता के अधीन विचार अभिव्यक्ति विश्वास पूजा व्यवसाय संघ और कारवाही की स्वतंत्रता की बात करता है इसमें अल्पसंख्यकों पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों और दलित और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान किए गए हैं मौलिक अधिकारों ने आम भारतीयों में निहित संभावनाओं को तलाशने में मदद की मौलिक अधिकारों के कारण सामान्य व्यक्ति की नागरिक स्वतंत्रता में वृद्धि हुई नीति निर्देशक सिद्धांतों में सामाजिक आर्थिक समता की संकल्पना की गई है इसने सरकारों का मार्गदर्शन किया और इसका नतीजा आज हमारे सामने है कि भारत का लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में तेजी से उभार हुआ अगर हम संविधान की विशेषताओं का अवलोकन करें तो यह साफ पता चलता कि भारतीय संविधान के दर्शन प्रस्तावना में उल्लिखित हम भारत के लोग के भावना सहित सभी मूल्यों को भारतीय संविधान का प्रत्येक शब्द ना सिर्फ अभिव्यक्त करता है बल्कि लगातार उनके प्रसार का माध्यम भी बना हुआ है।

क्या संविधान के लक्ष्यों को हासिल किया जा सका है ?

 

अब सवाल है कि क्या संविधान के लक्ष्यों को हासिल किया जा सका है जहां तक भारतीय संविधान के लक्ष्यों का सवाल है तो इसका लक्ष्य एक ऐसे देश का निर्माण करना है जो समता मूलक हो मानव अधिकारों से सुसज्जित हो जहां के लोग शिक्षा से लस हो और वहां लोकतांत्रिक भावनाओं की रक्षा हो सवाल है कि क्या हम इन लक्ष्यों को हासिल कर चुके हैं अगर भारत में शिक्षा की बात करें तो यहां वृक्षों की तादाद 28.2 करोड़ है जबकि भारत की कुल आबादी करीब 140 करोड़ है स्कूल जाने वाले कुल बच्चों में 18 फीसद माध्यमिक शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाते जबकि संविधान के अनुच्छेद 211a के तहत यह एक मौलिक अधिकार है मौजूदा वक्त में भारत में दुनिया के सबसे यानी 4 करोड़ अविकसित बच्चे हैं जिनका कद अपनी उम्र के औसत से कम है यह कुल बच्चों का अर्थ 3.7 फीस है सबसे खराब और सबसे अच्छी आर्थिक स्थिति वाले राज्यों में पोषण का बड़ा अंतर है मिसाल के तौर पर झारखंड में 5 साल से कम आयु के 47 प्र बच्चे अविकसित हैं जबकि केरल में मात्र 19 फीसद झारखंड में 42.1 फस बच्चों का वजन कम है जबकि संविधान के अनुच्छेद 47 के तहत पोषण और स्वास्थ्य सरकार की ही जिम्मेदारी है अनुच्छेद 38 के तहत राज्य लोगों के साथ सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक न्याय करेगा लेकिन तीनों ही स्तर पर देश में तमाम कमियां हैं समाज में भेदभाव अभी भी एक सच्चाई है लोगों को अभी भी राजनीतिक न्याय का इंतजार है और आर्थिक न्याय तो दूर की कौड़ी ही जान पड़ती है ऑक्सफेम की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सबसे अमीर 1 प्र लोगों के पास कुल संपत्ति का 40 प्र से अधिक हिस्सा है जो कि एक अपराध है रिपोर्ट का दावा है कि महिला श्रमिक पुरुष श्रमिक द्वारा कमाए गए प्रतिकी कमाई पर केवल 63 पैसे कमाती है अनुसूचित जाति और ग्रामीण श्रमिकों के लिए अंतर और भी गहरा है अनुसूचित जाति का श्रमिक लाभ प्राप्त सामाजिक समूहों की कमाई का महज 55 प्र कमाता है और ग्रामीण श्रमिक ने 2018 और 2019 के बीच शहरी कमाई का केवल आधा हिस्सा कमाया रिपोर्ट का यह दावा है कि शीर्ष 100 अरबपति भारतीयों के पास इतना पैसा है कि उन पर दो 2.5 प्र टैक्स लगाने से बच्चों को स्कूल में वापस लाने के लिए आवश्यक राज पूरी हो जाएगी यह तो कुछ उदाहरण भर हैं ऐसे तमाम मिसाले हैं जिनमें समझा जा सकता है कि भारतीय संविधान अभी भी की अपने लक्ष्यों से बेहद दूर है

भारतीय संबिधान की आगे राह क्या हो?

 ऐसे में सवाल है कि आगे राह क्या हो गौर तलब है कि भारतीय गणतंत्र ने अपनी यात्रा के करीब सात दशक पूरे कर लिए हैं इसने अपने लक्ष्यों को संपूर्ण रूप से अभी तक हासिल भले ही ना किया हो लेकिन इस इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि यह लगातार निखर रहा है भारत जैसे विशाल और विविधता से भरे देश में एक संविधान के तहत व्यवस्था का सुचारू रूप से चलना कोई मामूली बात नहीं है लेकिन इसके बावजूद भारत ने कई मामलों में प्रगति की है दुनिया के दूसरे देशों में संविधान ना सिर्फ अपने लक्ष्यों में कोसों दूर है बल्कि वहां के संविधान कदम दर कदम नाकाम हो रहे हैं पड़ोसी देश नेपाल की संविधान सभा कई बार असफल हुई थी और वहां संविधान की रक्षा एक बड़ी चुनौती बनी हुई है भारत के साथ आजाद हुए दूसरे कई मुल्कों का भी वही हाल है वहां कोई एक सिस्टम टिक नहीं पा रहा कहीं संविधान बदले जा रहे हैं तो कहीं उनकी धज्जियां उड़ाई जा रही हैं वहां जनतंत्र के पैर जम नहीं पा रहे लेकिन हमारी व्यवस्था निरंतर लोकतांत्रिक की ओर बढ़ रही है हमारा लोकतंत्र लगातार मजबूत हो रहा है जिसकी उम्मीद सात दशक पहले की किसी ने नहीं की थी यह ना केवल सफल हुआ है बल्कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है आज भारत अखंड है और कुछ अपवाद को दरकिनार कर दें तो यहां निरंकुश व्यवस्था कायम नहीं हुई कभी कोई गृह युद्ध नहीं हुआ यह सब हमारे दूर दृष्टि संपन्न और समावेशी संविधान की ही देन है समझना होगा कि किसी भी संविधान में हर परिस्थिति का समाधान नहीं दिया जा सकता बदलती हुई परिस्थितियों के साथ संविधान ने हमें हमशा ही हमारे समाज का मार्गदर्शन किया है यह भी समझने की जरूरत है कि संविधान अपने बल पर कभी कामयाब नहीं होते उन्हें कामयाब करने के लिए नागरिकों तथा जनप्रतिनिधियों को सजगता से काम करना होता है हम कह सकते हैं कि लागू होने के सात दशक बाद आज संविधान का सपना भले ही पूरी तरह सच ना हुआ हो लेकिन उसके दिशा निर्देश पर चलकर भारत एक महान राष्ट्र बनने में सफल जरूर हुआ है हमें यह याद रखने की जरूरत है कि भारतीय संविधान सिर्फ एक कागज का दस्तावेज नहीं है यह एक नागरिक दस्तावेज है जिसकी हिफाजत करना हम सभी भारतीयों का कर्तव्य है तो हमारा आज का सवाल है भारतीय संविधान अपने लक्ष्यों की ओर लगातार अग्रसर है इसकी विवेचना

FIQ

26 नवंबर संविधान दिवस क्या है?

26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है और कानून दिवस भी आज ही के दिन मनाया जाता है।

26 नवंबर 1949 को संविधान बनकर तैयार हुआ था।

26 नवंबर का क्या महत्व है?

आज के दिन संविधान दिवस के लिए बहुत ही खास होता है।

भारत का कौन सा संविधान दिवस 2023?

भारत में 26 नवंबर, दिन रविवार को संविधान दिवस मनाया जायेगा।

आज के दिन लोग #constitutionday2023 , constitution Day 2023 के नाम से ट्रेंड चलायेगे।